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Kumarakom : कुमाराकोम ने दुनिया को दिखाया कैसे प्रकृति अनुकूल तरीके से किया जा सकता है वैश्विक आयोजन

कुमाराकोम : केरल के कुमाराकोम में जुटे जी-20 शेरपाओं को विशेष रूप से नारियल के खोल से बनाए गए पात्रों में पेय पदार्थ दिए गए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया कि सम्मेलन कक्ष पर्यावरण अनुकूल हो।

चिलचिलाती धूप से मेहमानों को बचाने के लिये जूट के कपड़े की छत के साथ ही केरल के इस प्रतिष्ठित शहर ने दुनिया को दिखाया है कि कैसे पर्यावरण अनुकूल उपायों के साथ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी की जा सकती है।

भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत दूसरी शेरपा बैठक की यहां वेम्बानाड झील के किनारे मेजबानी के लिये सुविधाओं पर टिप्पणी करते हुए एक विदेशी प्रतिनिधि ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “यह बेहद प्रभावशाली है। यह व्यवस्था शानदार है।”

केरल पर्यटन विकास निगम (केटीडीसी) के स्वामित्व वाला प्रभावशाली जलीय रिसॉर्ट यहां के प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य के अंदर स्थित है। यहां सुदूर साइबेरियाई प्रवासी पक्षी भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

उन्होंने कहा कि बांस से बनी छत के साथ सम्मेलन कक्ष की आंतरिक साज सज्जा बेहद खूबसूरत है।

वहां मौजूद अन्य विदेशी प्रतिनिधियों ने भी उनसे सहमति जताई।

संयुक्त राष्ट्र के एक निकाय से जुड़ी एक महिला प्रतिनिधि ने कहा, “मैं वास्तव में पर्यावरण से जुड़ी महसूस कर रही हूं। स्थल लुभावना है, पानी से घिरा हुआ है।”

केटीडीसी की प्रबंध निदेशक आईएएस अधिकारी वी. विग्नेश्वरी ने कहा कि रिसॉर्ट की ओर जाने वाली सड़कों के किनारे बाड़ लगाने के लिए बांस, सम्मेलन स्थल और कॉटेज को जोड़ने वाले रास्तों पर लोगों को धूप से बचाने के लिये जूट के कपड़े और रिसॉर्ट परिसर के अंदर नहरों को आकर्षक बनाने के वास्ते नारियल के रेशों से बने कपड़ा (जियो टेक्सटाइल) का इस्तेमाल किया गया। यह पर्यावरण के प्रति केरल की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।

उन्होंने कहा, “यह हमारी अपनी पहल है।”

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “हम केरल के बारे में एक अच्छी भावना पैदा करना चाहते थे। केरल के जीवन का तरीका…यहां सब कुछ पर्यावरण अनुकूल है।”

उन्होंने कहा कि इस सुविधाओं को तैयार करने में इस्तेमाल की गई सभी सामग्री स्थानीय तौर पर उपलब्ध थी।

मेहमानों को पीने के लिये तरबूज और पुदीने से बना पेयपदार्थ दिया गया। इनके लिये नारियल के खोल को पात्र के तौर पर इस्तेमाल किया गया जबकि ‘स्ट्रॉ’ खासतौर पर चावल के आटे से बनाया गया था।


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