Thane : विदेश में रहते हुए भी जीवन में बना रहे धर्म-ध्यान का प्रभाव :आचार्य महाश्रमण

ठाणे : भारतीय श्रद्धालुओं से गुंजायमान हो रहा था। हर रोज तो अपने देश के हजारों श्रद्धालु दिखाई देते थे, किन्तु शनिवार को भारत के अलावा 16 देशों में रहने वाले अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एनआरआई समिट में भाग लेने तथा अपने देव, धर्म व गुरु की निकट सन्निधि को प्राप्त करने को पहुंच रहे थे। तीर्थंकर समवसरण के विशाल मंच पर भारतीय तिरंगे के साथ अन्य सोलह देशों के ध्वज व जैन ध्वज मानों उन अप्रवासी भारतीयों का प्रतीक बने हुए थे।राष्ट्रसंत आचार्य महाश्रमण ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए श्रुत और शील सम्पन्न बनने की प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त समुपस्थित अप्रवासी श्रद्धालुओं को पावन संदेश प्रदान करते हुए कहा कि चार प्रकार की दृष्टियां बताई गई हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन चारों दृष्टियों पर ध्यान दिया जाए तो ज्ञान स्पष्ट हो सकता है। क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो लोकाकाश और अलोकाकाश दो होते हैं। लोकाकाश में ही सारे प्राणी, पुद्गल आदि अवस्थित हैं। इनमें अनेक क्षेत्र ऐसे जहां मनुष्य निवास करते हैं। भारत से बाहर के देशों में साधु-संतों का इतना मेला और संख्या भारत की तुलना में ना के बराबर है। इस दृष्टि से देखें तो भारत तो मानों धर्म क्षेत्र है। तेरापंथी महासभा द्वारा इस समिट के द्वारा बाहर रहने वाले लोगों को भी अपने धर्म से जोड़ने रखने का बहुत सुन्दर प्रयास किया गया है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय समण श्रेणी के रूप में एक तेरापंथ धर्मसंघ को एक अवदान मिला। जिसके माध्यम से समणियां विदेशों में जाकर वहां रहने वाले लोगों को धर्म, ध्यान आदि लाभान्वित कराती हैं और अब तो तकनीक आदि के माध्यम से गुरुओं की वाणी सुनने का भी अवसर मिल रहा है तो तकनीक से कुछ क्षेत्रीय निकटता हुई है, किन्तु एक टेलीविजन पर देखने और एक साक्षात देखने और अनुभव करने की बात अलग होती है। यह महासभा का बहुत सुन्दर उपक्रम है। इससे बाहर रहने वाले लोगों से मिलना हो रहा है। वर्तमान साध्वीप्रमुखा भी पहले समणी रूप में रहते हुए विदेश यात्रा भी की हैं। हमारे साध्वीवर्या भी समण श्रेणी में रही हुई हैं। मूल बात यह है कि विदेश में रहने पर भी जीवन में धर्म-ध्यान का प्रभाव बना रहना चाहिए। कोरी भौतिकता के युग में भी आदमी का दृष्टिकोण आध्यात्मिकता से परिपूर्ण रहे। कोरी भौतिकता चिंता, कुंठा में ले जा सकती है। भले दो दिन का ही आध्यात्मिक खुराक पाकर मन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास होता रहे, बच्चों में भी धार्मिक प्रभावना होती रहे, मंगलकामना। समिट के संदर्भ में एनआरआई समिट के संयोजक व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-मुम्बई के स्वागताध्यक्ष सुरेन्द्र बोरड़ पटावरी, सह संयोजक जयेश बड़ोला व महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
Source link